- 30 अप्रैल, 2020 को मणिपुर के चक-हाओ (Chak-Hao) अर्थात काले चावल और गोरखपुर के टेराकोटा को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग मिला है।
- चक-हाओ के लिए आवेदन चक-हाओ (ब्लैक राइस), कंसोर्टियम ऑफ प्रोड्यूसर्स द्वारा मणिपुर में दायर किया गया था जबकि गोरखपुर टेराकोटा के लिए आवेदन उत्तर प्रदेश में ‘लक्ष्मी टेराकोटा मुर्तिकला केंद्र’ द्वारा दायर किया गया था।
- चाक-हाओ, एक सुगंधित चिपचिपा चावल है जिसकी सदियों से मणिपुर में खेती की जाती है।
- यह आम तौर पर सामुदायिक दावतों के दौरान खाया जाता है और इसे चाक-हाओ खीर के रूप में परोसा जाता है।
- चक-हाओ का उपयोग चिकित्सकों द्वारा पारंपरिक चिकित्सा के रूप में भी किया गया है।
- यह चावल एक रेशेदार चोकर परत और उच्च कच्चे फाइबर सामग्री की उपस्थिति के कारण 40-45 मिनट का सबसे लंबा खाना पकाने का समय लेता है।
- वर्तमान में, मणिपुर के कुछ हिस्सों में चाक-हाओ की खेती पारंपरिक तरीके से की जाती है।
- पहले से भिगोए गए बीजों की सीधी बुवाई या चावल कि सामान्य कृषि के समान धान के खेतों में नर्सरी में उगाए गए बीजों की रोपाई की जाती है।
- ज्ञातव्य है की मणिपुर के अन्य जीआई टैग – शफी लांफी (Shaphee Lanphee), वांग्खी फेई (Wangkhei Phee), मोइरांग फेई (Moirang Phee) टेक्सटाइल क्षेत्र से और कछई नींबू (Kachai Lemon) कृषि क्षेत्र से संबंधित है।
- गोरखपुर का टेराकोटा कार्य सदियों पुरानी पारंपरिक कला का रूप है, जहाँ कुम्हार हाथ से लगाए गए अलंकरण के साथ विभिन्न जानवरों जैसे कि घोड़े, हाथी, ऊंट, बकरी, बैल आदि की आकृतियां बनाते हैं।
- शिल्प कौशल के कुछ प्रमुख उत्पादों में हौदा हाथी, महावतदार घोड़ा, हिरण, ऊँट, पाँच मुँह वाले गणेश, एकल-सामना किए हुए गणेश, हाथी की मेज, झाड़, लटकती हुई घंटियाँ आदि हैं।
- पूरा काम नंगे हाथों से किया जाता है और कारीगर प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते हैं।
- स्थानीय कारीगरों द्वारा डिज़ाइन किए गए टेराकोटा काम की 1,000 से अधिक किस्में हैं।
संभावित प्रश्न
प्रश्न – 30 अप्रैल, 2020 को भारत के कौन से दो प्रसिद्ध क्षेत्रों को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग मिला है?
(a) चक-हाओ और टेराकोटा
(b) कछई नींबू और टेराकोटा
(c) नागा मिर्चा और चम्बा रुमाल
(d) मुगा सिल्क और चक-हाओ
उत्तर- (a)
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